Try, try and try again...

     असफलता इंसान की जिंदगी का अंत नहीं होती बल्कि असफलता ही सफलता के नए दरवाजे खोलती है। असफल होकर इंसान सफलता की तरफ एक कदम और बढ़ाता है।  

कहते  हैं - "कोशिश करने वालों  की कभी हार नहीं होती"

      


यह साबित कर दिखाया IAS में 156वीं रैंक हांसिल करने वाले जय गणेश ने।  6 बार असफल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारने वाले पूर्ण संकल्प के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु द्रढ़ता से जुटे रहने वाले जय गणेश , वस्तुतः उन लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत है , जो एक बार असफल होने पर हो निराश होकर अपनी राह बदल लेते हैं। 

          "QUITTERS NEVER WIN & WINNERS NEVER QUIT."   

विल्लोर जिले के छोटे से गाँव में जय गणेश का जन्म एक गरीब परिवार में है था। घर में उसकी दो छोटी बहनें एवं एक भाई था तथा पिता क आय मात्र RS. 4500 थी। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। दसवीं पास करने के बाद जय गणेश ने पॉलीटेक्निक कॉलेज में केवल इसलिए प्रवेश लिया की पॉलीटेक्निक डिप्लोमा के बाद उस समय तुरंत नौकरी मिल जाती थी। वहाँ 91% अंक प्राप्त करने से उसे गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में मेरिट के आधार पर प्रवेश मिल गया। इंजीनियरिंग के बाद गणेश को 2500  रुपये प्रति माह पर बेंगलुरु में नौकरी मिल गई , लेकिन उसका लक्ष्य तो तो IAS बनना था। उसने अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया , लेकिन दो बार वह प्रारम्भिक परीक्षा भी पास  नहीं कर सका। 

इसी दौरान उसके एक मित्र ने उसे मकेनिकल  बजाय सोशियोलॉजी विषय लेकर तयारी करने की सलाह दी। लेकिन यह तीसरी बार भी असफल हो गया। लेकिन गणेश ने हार नहीं मानी और उसने चौथी बार की परीक्षा देने के लिए एक कैंटीन में बिल क्लर्क की नौकरी की। कई बार वेटर का भी काम किया। 


इस बार उसका साक्षात्कार के लिए बुलावा  आया , लेकिन इस भी अंग्रेजी में कजोर होने के कारण वह अपनी बात उचित ढंग से न रख सका और उसे फिर से असफलता मिली। 5वीं  बार वह फिर से असफल हो गया।    

6वीं बार उसने प्रारंभिक (Preliminary) एवं मुख्य (Main) दोनों परीक्षाएँ पास कर ली ,लेकिन साक्षात्कार (Interview) में  पुनः फेल हो गया। इसी बीच उसका चयन IB में ऑफिसर पद के लिए हो गया। अब उसके पास  दो रास्ते थे ,एक IB में  एक अधिकारी की तरह नौकरी करने का , दूसरा IAS के लिए पुनः तयारी करने का और उसने दूसरा रास्ता चुना।  वह पुनः तैयार हो गया IAS  की तैयारी के लिए और इस बार सबकुछ दांव पर लग चूका था। लेकिन गणेश की जिद , तपस्या ,संकल्प के आगे पराजय को भी पराजित होना पड़ा। 



जय गणेश एक ऐसा योद्धा साबित हुआ , जिसने यह सिद्ध कर दिया की " जीतना है,तो जिद करो। "




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